सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा के मामले हाईकोर्ट में हो सकेंगे रद्द, CrPC 482/BNSS 528 को मिली मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: घरेलू हिंसा के मामले हाईकोर्ट में हो सकेंगे रद्द, CrPC 482/BNSS 528 को मिली मंजूरी
WhatsApp Group Join NowFacebook Page Follow NowYouTube Channel Subscribe NowTelegram Group Follow NowInstagram Follow NowDailyhunt Join NowGoogle News Follow Us!
मुख्य बातें:-
-
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत शिकायतों को हाईकोर्ट रद्द कर सकता है।
-
यह शक्ति CrPC की धारा 482 (या नई BNSS की धारा 528) के तहत प्रदान की गई है।
-
न्यायालय ने आगाह किया: इस शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानी और विवेक से हो।
नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार, 19 मई को एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है, जिसके तहत घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (DV Act) के तहत दर्ज शिकायतों को उच्च न्यायालय (High Court) द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 या इसके समकक्ष भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत रद्द किया जा सकता है। यह फैसला कानूनी प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण स्पष्टता लाता है, खासकर उन मामलों में जहां प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता या कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होता प्रतीत होता है।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय और शर्तें
न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों को DV अधिनियम की धारा 12 के तहत शुरू की गई कार्यवाही को समाप्त करने का अधिकार है। हालांकि, पीठ ने इस शक्ति के प्रयोग में अत्यधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
अदालत ने स्पष्ट किया, “इस शक्ति का प्रयोग बहुत सावधानी और विवेक के साथ किया जाना चाहिए, क्योंकि घरेलू हिंसा अधिनियम एक सामाजिक कल्याणकारी विधान है।” सर्वोच्च न्यायालय ने आगे निर्देश दिया कि उच्च न्यायालयों को केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए “जब कोई गंभीर अन्याय या स्पष्ट कानूनी त्रुटि हो।”सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
न्यायिक विवेक और सामाजिक कल्याण का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि घरेलू हिंसा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है। इसलिए, किसी भी मामले को रद्द करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे कानून का मूल उद्देश्य विफल न हो और पीड़ित पक्ष के साथ अन्याय न हो। यह संतुलन बनाए रखना उच्च न्यायालयों की जिम्मेदारी होगी।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस ओक का आत्मनिरीक्षण और न्यायिक विकास
दिलचस्प बात यह है कि न्यायमूर्ति ओका ने स्वयं इस तथ्य को स्वीकार किया कि वह 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले का हिस्सा थे, जिसमें यह माना गया था कि DV एक्ट की कार्यवाही को CrPC की धारा 482 के तहत रद्द नहीं किया जा सकता। हालांकि, बाद में उसी हाईकोर्ट की एक वृहद पीठ (Full Bench) ने इस दृष्टिकोण को गलत ठहराया था।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
इस संदर्भ में न्यायमूर्ति ओका ने टिप्पणी की, “न्यायाधीशों के लिए भी सीखने की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। हम अपनी त्रुटियों को सुधारने और कानून की सही व्याख्या करने के लिए बाध्य हैं।” यह टिप्पणी न्यायिक प्रणाली में आत्म-सुधार और विकास की भावना को दर्शाती है।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
क्या है CrPC की धारा 482 और BNSS की धारा 528?
CrPC की धारा 482 (और इसके समकक्ष नई BNSS की धारा 528) उच्च न्यायालयों को अंतर्निहित शक्तियां (inherent powers) प्रदान करती है। इन शक्तियों का उपयोग न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने, न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने, या किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए किया जाता है। यह एक असाधारण प्रावधान है जिसका प्रयोग संयम और सावधानी से किया जाता है।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
फैसले का संभावित प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों की कानूनी प्रक्रिया में स्पष्टता आएगी। यह उन प्रतिवादियों को राहत प्रदान कर सकता है जिनके खिलाफ झूठे या निराधार आरोप लगाए गए हों, और उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई से बचा सकता है। हालांकि, अदालत द्वारा दी गई चेतावनी यह भी सुनिश्चित करती है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग न हो और वास्तविक पीड़ितों के अधिकार सुरक्षित रहें।सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला









