पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़: पत्रकार की सतर्कता से उजागर हुआ बड़ा घोटाला

? पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़: पत्रकार की सतर्कता से उजागर हुआ बड़ा घोटाला
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम), छत्तीसगढ़ – जिले में अवैध पशु व्यापार का एक बड़ा मामला सामने आया है, जहां पत्रकार कृष्णा पाण्डेय की सतर्कता ने न सिर्फ 150 से ज्यादा भैंसों की फर्जी तस्करी का खुलासा किया, बल्कि पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
? 150 से ज्यादा भैंसे, बिना वैध दस्तावेज
10 जनवरी की रात सोनकुंड बाजार के पास बड़ी संख्या में भैंसों को देखा गया। पत्रकार कृष्णा पाण्डेय मौके पर पहुंचे और जब व्यापारियों से पशु परिवहन दस्तावेज और खरीदी-विक्रय लाइसेंस मांगा, तो ज़्यादातर के पास कोई वैध कागज़ नहीं मिले।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
? पुलिस को दी गई सूचना, मौके पर हुई कार्रवाई
पत्रकार ने तुरंत थाना पेंड्रा के टीआई बंजारे को सूचित किया, जिन्होंने एसआई साहू और एएसआई रजक को मौके पर भेजा। मौके पर जांच में पाया गया कि अधिकांश भैंसे गैर-कानूनी तरीके से लाए गए थे। पुलिस ने पशु मालिकों की जानकारी दर्ज की और सुबह थाने बुलाने का निर्देश दिया।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
? रात की सख्ती, सुबह की ढील: भैंसों को दी गई रिहाई
हालांकि रातभर कार्रवाई की उम्मीद थी, लेकिन सुबह 4 बजे बिना पूरी वैधता जांचे सभी भैंसों को बाजार में छोड़ने की अनुमति दे दी गई। इस पर पत्रकार ने आपत्ति जताई, लेकिन पुलिस का जवाब था कि 70 भैंसों के लिए दस्तावेज थे, जबकि संख्या 100 से ज्यादा थी।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
⚠️ पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल, भ्रष्टाचार की आशंका
पत्रकार कृष्णा पाण्डेय ने टीआई बंजारे की भूमिका पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह पशुपालन नहीं, व्यापार का मामला है, फिर भी बिना ट्रेडिंग लाइसेंस के भैंसों को छोड़ा गया। ये सरकारी नियमों और कानूनों की अवहेलना है।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
? कानूनी अनदेखी: नियमों की खुली उड़ाई गई धज्जियां
भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा पशु व्यापार के लिए वेटरनरी सर्टिफिकेट, ट्रांसपोर्ट परमिट और लाइसेंस जरूरी होते हैं। इस मामले में इन सभी नियमों की पूर्ण रूप से अनदेखी की गई।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
? अब सवाल जनता से: क्या चुप बैठना सही है?
क्या पेंड्रा पुलिस ने व्यापारियों से सांठगांठ की है? क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या मामला दबा दिया जाएगा? क्या हम पत्रकारों और नागरिकों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि ऐसे भ्रष्टाचार का विरोध करें?पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़
यह घटना दिखाती है कि जागरूक पत्रकारिता ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकती है। अगर जनता अब भी नहीं जागी, तो ऐसे अवैध पशु व्यापार और प्रशासनिक मिलीभगत के मामले आम होते चले जाएंगे।पेंड्रा में फर्जी भैंसा कारोबार का भंडाफोड़



![शिक्षा सत्र का डेढ़ माह बीता, अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचीं किताबें, पुरानी पुस्तकों के सहारे भविष्य की पढ़ाई गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: छत्तीसगढ़ में नया शैक्षणिक सत्र 2025-26 शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय हो गया है, लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले के सरकारी स्कूलों में छात्रों के बस्ते अब भी खाली हैं।[1] पाठ्य पुस्तक निगम की लापरवाही के चलते अधिकांश कक्षाओं की किताबें अब तक स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई हैं।[1][2] इस स्थिति के कारण छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है और वे पुरानी किताबों से काम चलाने को मजबूर हैं।[1] त्रैमासिक परीक्षा सिर पर, कैसे पूरा होगा कोर्स? स्कूलों में किताबों की यह कमी शिक्षकों और अभिभावकों दोनों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है। लगभग डेढ़ महीने बाद त्रैमासिक परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में बिना नई किताबों के पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करना एक बड़ी चुनौती है।[1] जिले के प्राइमरी से लेकर मिडिल स्कूलों तक में यही स्थिति है। उदाहरण के लिए, कक्षा 6वीं के छात्रों को सिर्फ गणित की किताब मिली है, जबकि 8वीं के छात्रों को भी कुछ ही विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं।[1] नए पाठ्यक्रम के कारण पुरानी किताबों से पढ़ाई करना भी पूरी तरह संभव नहीं हो पा रहा है।[1] क्यों हुई किताबों के वितरण में देरी? इस साल किताबों के वितरण में देरी के कई कारण सामने आ रहे हैं: तकनीकी खामियां: इस वर्ष भ्रष्टाचार रोकने के लिए किताबों पर बारकोड लगाए गए हैं।[3][4] लेकिन पाठ्य पुस्तक निगम के पोर्टल का सर्वर बार-बार डाउन होने से स्कूलों में किताबों की स्कैनिंग और डेटा अपलोडिंग का काम अटक गया है, जिससे वितरण रुका हुआ है।[5][6] पुराने डेटा पर छपाई: किताबों की छपाई पुराने यू-डायस (UDISE) डेटा और पिछले साल के स्टॉक के आधार पर की गई। इसमें नए दाखिलों और छात्रों की बढ़ी हुई संख्या का अनुमान नहीं लगाया गया, जिससे कई स्कूलों में मांग के अनुरूप किताबें नहीं पहुंचीं।[1][2] वितरण में अव्यवस्था: पाठ्य पुस्तक निगम से स्कूलों तक किताबें पहुंचाने की प्रक्रिया में भी अव्यवस्था देखने को मिली है।[2][5] प्रशासन के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस हालांकि, पाठ्य पुस्तक निगम और शिक्षा विभाग के अधिकारी जल्द ही किताबें पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।[2][5] स्कूल प्रबंधन द्वारा जिला कार्यालय को किताबों की मांग के लिए पत्र लिखे जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।[1] इस लापरवाही का खामियाजा सीधे तौर पर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। अभिभावकों और शिक्षकों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द किताबों की व्यवस्था की जाए ताकि छात्रों की पढ़ाई और भविष्य अधर में न लटके।[1]](https://nidarchhattisgarh.com/wp-content/uploads/2025/08/16a.jpg)





