छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान! दोषी पाए जाने पर मिलती है ‘सजा’

छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान! दोषी पाए जाने पर मिलती है ‘सजा’, छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी अनूठी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के लिए दुनिया भर में मशहूर है। इन्हीं में से एक है यहां लगने वाली ‘देवी-देवताओं की अदालत’, एक ऐसी जगह जहां फरियादी इंसान होते हैं और मुजरिम खुद देवी-देवता। यहां बाकायदा सुनवाई होती है, आरोप तय होते हैं और दोषी पाए जाने पर देवताओं को सजा भी सुनाई जाती है।
पहाड़ों के बीच लगती है देव-अदालत, क्या है सदियों पुरानी परंपरा?
हर साल बस्तर के केशकाल, मांझीनगढ़ और कारी पानी-कुर्सी घाट के घने जंगलों और पहाड़ों के बीच यह अनूठा ‘जातरा’ (मेला) आयोजित होता है। माना जाता है कि यह परंपरा बस्तर राजघराने के समय से चली आ रही है। इस दिन दूर-दराज के गांवों से पुजारी और मांझी अपने-अपने ग्राम देवताओं की डोलियां लेकर यहां इकट्ठा होते हैं। हजारों भक्तों की भीड़ के बीच लगने वाली यह अदालत आस्था और न्याय का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है।छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान!
इंसान होते हैं फरियादी, देवता होते हैं मुजरिम! कैसे होती है सुनवाई?
इस अदालत की प्रक्रिया किसी इंसानी अदालत से कम नहीं है। ग्रामीण अपनी समस्याएं लेकर यहां पहुंचते हैं। अगर किसी गांव में बीमारी फैली हो, फसल खराब हो गई हो या कोई अनहोनी हुई हो, तो इसके लिए सीधे ग्राम देवता को जिम्मेदार ठहराया जाता है। देवता पर आरोप लगता है कि उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा नहीं की।छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान!
इसके बाद आरोपों पर सुनवाई होती है। अगर देवता निर्दोष साबित होते हैं, तो उन्हें सम्मान के साथ बरी कर दिया जाता है। लेकिन, दोषी पाए जाने पर उन्हें कठोर दंड भुगतना पड़ता है। सजा के तौर पर देवता को पूजा-पाठ से वंचित किया जा सकता है, ‘कारावास’ में रखा जा सकता है या फिर ‘मृत्युदंड’ (जिसका अर्थ है कि उनकी मान्यता समाप्त कर दी जाती है) तक दिया जा सकता है।छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान!
अनोखे भोग और परंपराएं, क्यों है महिलाओं का प्रवेश वर्जित?
इस जातरा में श्रद्धालु ‘सेवा’ और ‘रवाना’ लेकर पहुंचते हैं। ‘सेवा’ में चावल, तेल, हल्दी और धूप जैसी पूजन सामग्री होती है, जबकि ‘रवाना’ में मुर्गी का बच्चा चढ़ाया जाता है, जिसे बुरी शक्तियों को दूर करने का प्रतीक माना जाता है। इस आयोजन में एक खास परंपरा यह भी है कि जातरा के दिन महिलाओं का प्रवेश वर्जित होता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह नियम अनिष्टकारी शक्तियों से उनकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है।छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान!
जब मुस्लिम डॉक्टर बन गए ‘खान देव’, सौहार्द की मिसाल है यह पूजा
इस जातरा स्थल की एक और खास बात है ‘डॉक्टर खान देव’ की पूजा। लोककथाओं के अनुसार, खान देव एक चिकित्सक थे जो लोगों का निःस्वार्थ इलाज करते थे। उनकी मृत्यु के बाद लोगों ने उन्हें देवता मानकर पूजना शुरू कर दिया। आज उन्हें महामारी और बीमारियों से बचाने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है और प्रसाद के तौर पर अंडा चढ़ाया जाता है। यह परंपरा बस्तर में सांप्रदायिक सौहार्द की एक जीवंत मिसाल है।छत्तीसगढ़ की अनोखी अदालत, जहां कटघरे में खड़े होते हैं भगवान!









