गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिला “जल अभाव क्षेत्र” घोषित, फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर, प्रशासन मौन?

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिला “जल अभाव क्षेत्र” घोषित, फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर, प्रशासन मौन?
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छत्तीसगढ़ का गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिला गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए जिला प्रशासन ने पूरे जिले को “जल अभाव क्षेत्र” घोषित कर दिया है और नए नलकूप खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन इसके बावजूद, जिले में अवैध बोर खनन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, जो सीधे तौर पर कलेक्टर के आदेशों की अवहेलना है।फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
कलेक्टर का आदेश और जमीनी हकीकत
ग्रीष्म ऋतु में पेयजल की विकट समस्या को देखते हुए और इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी सुश्री लीना कमलेश मांडवी ने छत्तीसगढ़ पेयजल परिरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए 8 अप्रैल से आगामी आदेश तक पूरे गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले को “जल अभाव क्षेत्र” घोषित किया था। इस घोषणा के साथ ही जिले में किसी भी नए नलकूप के खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था।फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। जिले के विभिन्न हिस्सों से लगातार अवैध बोर खनन के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या जिला प्रशासन के आदेश महज कागजों तक ही सीमित हैं?फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
“भारत बोरवेल्स” पेंड्रा पर मनमानी का आरोप
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, हाल ही में “भारत बोरवेल्स” पेंड्रा नामक एक फर्म द्वारा मरवाही विकासखंड के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र ग्राम पंचायत उषाढ़ में नियम विरुद्ध बोर खनन किया गया है। यह कोई अकेला मामला नहीं है; बताया जा रहा है कि जिले में कई अन्य स्थानों पर भी इसी तरह चोरी-छिपे और नियमों को ताक पर रखकर बोर खनन किया जा रहा है।फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
क्या प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा यह सब?
चिंता का विषय यह है कि जिला प्रशासन को इन अवैध गतिविधियों की कानों-कान भनक तक नहीं लग पा रही है, या फिर जानबूझकर अनदेखी की जा रही है। बोरवेल मालिक बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, जिससे जिले का भूजल स्तर और भी नीचे जाने का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति भविष्य में और भी भयावह जल संकट को जन्म दे सकती है।फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
प्रशासनिक कार्रवाई का इंतजार
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिला प्रशासन इस खुलेआम हो रहे नियम उल्लंघन और कलेक्टर के आदेशों की अवहेलना पर क्या कार्रवाई करता है। क्या “भारत बोरवेल्स” जैसी फर्मों के हौसले इसी तरह बुलंद होते रहेंगे, या फिर उनके खिलाफ कोई ठोस प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई की जाएगी? जिले की जनता प्रशासन से इस गंभीर मामले में तत्काल हस्तक्षेप और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की उम्मीद कर रही है, ताकि जल संरक्षण के प्रयासों को पलीता न लगे और भविष्य के लिए जल सुरक्षित रह सके।फिर भी धड़ल्ले से हो रहा अवैध बोर खनन! कलेक्टर के आदेश बेअसर
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GPM जिले में जल संकट गहराया, प्रतिबंध के बावजूद बोर खनन जारी
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कलेक्टर के आदेशों की खुलेआम उड़ाई जा रही धज्जियां
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“भारत बोरवेल्स” पेंड्रा पर नियम तोड़ने का गंभीर आरोप
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क्या जिला प्रशासन की चुप्पी अवैध खनन को दे रही बढ़ावा?
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अवैध बोर खनन पर कब होगी कार्रवाई? जनता में आक्रोश



![शिक्षा सत्र का डेढ़ माह बीता, अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचीं किताबें, पुरानी पुस्तकों के सहारे भविष्य की पढ़ाई गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: छत्तीसगढ़ में नया शैक्षणिक सत्र 2025-26 शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय हो गया है, लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले के सरकारी स्कूलों में छात्रों के बस्ते अब भी खाली हैं।[1] पाठ्य पुस्तक निगम की लापरवाही के चलते अधिकांश कक्षाओं की किताबें अब तक स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई हैं।[1][2] इस स्थिति के कारण छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है और वे पुरानी किताबों से काम चलाने को मजबूर हैं।[1] त्रैमासिक परीक्षा सिर पर, कैसे पूरा होगा कोर्स? स्कूलों में किताबों की यह कमी शिक्षकों और अभिभावकों दोनों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है। लगभग डेढ़ महीने बाद त्रैमासिक परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में बिना नई किताबों के पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करना एक बड़ी चुनौती है।[1] जिले के प्राइमरी से लेकर मिडिल स्कूलों तक में यही स्थिति है। उदाहरण के लिए, कक्षा 6वीं के छात्रों को सिर्फ गणित की किताब मिली है, जबकि 8वीं के छात्रों को भी कुछ ही विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं।[1] नए पाठ्यक्रम के कारण पुरानी किताबों से पढ़ाई करना भी पूरी तरह संभव नहीं हो पा रहा है।[1] क्यों हुई किताबों के वितरण में देरी? इस साल किताबों के वितरण में देरी के कई कारण सामने आ रहे हैं: तकनीकी खामियां: इस वर्ष भ्रष्टाचार रोकने के लिए किताबों पर बारकोड लगाए गए हैं।[3][4] लेकिन पाठ्य पुस्तक निगम के पोर्टल का सर्वर बार-बार डाउन होने से स्कूलों में किताबों की स्कैनिंग और डेटा अपलोडिंग का काम अटक गया है, जिससे वितरण रुका हुआ है।[5][6] पुराने डेटा पर छपाई: किताबों की छपाई पुराने यू-डायस (UDISE) डेटा और पिछले साल के स्टॉक के आधार पर की गई। इसमें नए दाखिलों और छात्रों की बढ़ी हुई संख्या का अनुमान नहीं लगाया गया, जिससे कई स्कूलों में मांग के अनुरूप किताबें नहीं पहुंचीं।[1][2] वितरण में अव्यवस्था: पाठ्य पुस्तक निगम से स्कूलों तक किताबें पहुंचाने की प्रक्रिया में भी अव्यवस्था देखने को मिली है।[2][5] प्रशासन के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस हालांकि, पाठ्य पुस्तक निगम और शिक्षा विभाग के अधिकारी जल्द ही किताबें पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।[2][5] स्कूल प्रबंधन द्वारा जिला कार्यालय को किताबों की मांग के लिए पत्र लिखे जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।[1] इस लापरवाही का खामियाजा सीधे तौर पर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। अभिभावकों और शिक्षकों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द किताबों की व्यवस्था की जाए ताकि छात्रों की पढ़ाई और भविष्य अधर में न लटके।[1]](https://nidarchhattisgarh.com/wp-content/uploads/2025/08/16a.jpg)





