फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन! आदिवासी विकास विभाग पर उठे गंभीर सवाल

फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन! आदिवासी विकास विभाग पर उठे गंभीर सवाल
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में शंकर वस्त्रकार का मामला हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंचने को तैयार
गौरेला-पेंड्रा-मरवाही। फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन!, छत्तीसगढ़ के आदिवासी विकास विभाग में एक बार फिर फर्जी जाति प्रमाण पत्र घोटाला सामने आया है। शंकर लाल वस्त्रकार, जो वर्षों से विभाग में कार्यरत हैं, पर आरोप है कि उन्होंने महर (OBC) जाति के होते हुए खुद को महार (SC) दिखाकर सरकारी नौकरी हासिल की और अब पदोन्नति भी प्राप्त कर ली है।
फर्जी जाति प्रमाण पत्र के बावजूद प्रमोशन, नियमों की खुली अनदेखी
30 जून 2025 को जारी आदेश (क्रमांक 848) के तहत शंकर वस्त्रकार को सहायक ग्रेड-3 से सहायक ग्रेड-2 पद पर प्रमोट किया गया है। जबकि राजस्व अभिलेखों व पारिवारिक दस्तावेजों में उनकी जाति OBC (महरा) दर्ज है।फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन!
विभाग को इस फर्जीवाड़े की जानकारी पहले से थी, फिर भी न जांच करवाई गई, न ही प्रमाण पत्र की वैधता को परखा गया, बल्कि उन्हें प्रमोशन देकर इस फर्जी दस्तावेज को वैधता दे दी गई।फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन!
“10 साल से सेवा में हैं, इसलिए प्रमोशन देना था” – विभाग की चौंकाने वाली सफाई
जब अधिकारियों से जवाब मांगा गया तो उन्होंने यह कहते हुए बचाव किया कि,
“वह 10 साल से सेवा में हैं, इसलिए प्रमोशन देना आवश्यक था।”
यह तर्क न केवल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी मखौल उड़ाता है। कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर प्राप्त नौकरी और लाभ स्वतः अमान्य होते हैं।
केवल एक मामला नहीं, पूरे नेटवर्क का संकेत
सूत्रों के अनुसार, आदिवासी विकास विभाग में ऐसे कई कर्मचारी पदस्थ हैं जिन्होंने गलत जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी और अब प्रमोशन प्राप्त किया है। यह एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा हो सकता है, जिसे भीतर से मौन स्वीकृति प्राप्त है।फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन!
अब हाईकोर्ट, आयोग और लोकायुक्त तक पहुंचेगा मामला
यदि समय रहते सरकार और विभाग ने कार्रवाई नहीं की, तो यह मामला जल्द ही राज्य अनुसूचित जाति आयोग, लोकायुक्त और हाईकोर्ट की जांच के दायरे में आ सकता है। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की पदोन्नति का नहीं बल्कि आरक्षण व्यवस्था की गरिमा और संविधान की आत्मा की रक्षा का है।फर्जी जाति प्रमाण पत्र से मिली नौकरी और प्रमोशन!



![शिक्षा सत्र का डेढ़ माह बीता, अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचीं किताबें, पुरानी पुस्तकों के सहारे भविष्य की पढ़ाई गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: छत्तीसगढ़ में नया शैक्षणिक सत्र 2025-26 शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय हो गया है, लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले के सरकारी स्कूलों में छात्रों के बस्ते अब भी खाली हैं।[1] पाठ्य पुस्तक निगम की लापरवाही के चलते अधिकांश कक्षाओं की किताबें अब तक स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई हैं।[1][2] इस स्थिति के कारण छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है और वे पुरानी किताबों से काम चलाने को मजबूर हैं।[1] त्रैमासिक परीक्षा सिर पर, कैसे पूरा होगा कोर्स? स्कूलों में किताबों की यह कमी शिक्षकों और अभिभावकों दोनों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है। लगभग डेढ़ महीने बाद त्रैमासिक परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में बिना नई किताबों के पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करना एक बड़ी चुनौती है।[1] जिले के प्राइमरी से लेकर मिडिल स्कूलों तक में यही स्थिति है। उदाहरण के लिए, कक्षा 6वीं के छात्रों को सिर्फ गणित की किताब मिली है, जबकि 8वीं के छात्रों को भी कुछ ही विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं।[1] नए पाठ्यक्रम के कारण पुरानी किताबों से पढ़ाई करना भी पूरी तरह संभव नहीं हो पा रहा है।[1] क्यों हुई किताबों के वितरण में देरी? इस साल किताबों के वितरण में देरी के कई कारण सामने आ रहे हैं: तकनीकी खामियां: इस वर्ष भ्रष्टाचार रोकने के लिए किताबों पर बारकोड लगाए गए हैं।[3][4] लेकिन पाठ्य पुस्तक निगम के पोर्टल का सर्वर बार-बार डाउन होने से स्कूलों में किताबों की स्कैनिंग और डेटा अपलोडिंग का काम अटक गया है, जिससे वितरण रुका हुआ है।[5][6] पुराने डेटा पर छपाई: किताबों की छपाई पुराने यू-डायस (UDISE) डेटा और पिछले साल के स्टॉक के आधार पर की गई। इसमें नए दाखिलों और छात्रों की बढ़ी हुई संख्या का अनुमान नहीं लगाया गया, जिससे कई स्कूलों में मांग के अनुरूप किताबें नहीं पहुंचीं।[1][2] वितरण में अव्यवस्था: पाठ्य पुस्तक निगम से स्कूलों तक किताबें पहुंचाने की प्रक्रिया में भी अव्यवस्था देखने को मिली है।[2][5] प्रशासन के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस हालांकि, पाठ्य पुस्तक निगम और शिक्षा विभाग के अधिकारी जल्द ही किताबें पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।[2][5] स्कूल प्रबंधन द्वारा जिला कार्यालय को किताबों की मांग के लिए पत्र लिखे जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।[1] इस लापरवाही का खामियाजा सीधे तौर पर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। अभिभावकों और शिक्षकों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द किताबों की व्यवस्था की जाए ताकि छात्रों की पढ़ाई और भविष्य अधर में न लटके।[1]](https://nidarchhattisgarh.com/wp-content/uploads/2025/08/16a.jpg)





