आज नाग पंचमी: शिव, सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा, जानें मुहूर्त और पौराणिक कथा

आज नाग पंचमी: शिव, सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा, जानें मुहूर्त और पौराणिक कथा
सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा, सावन महीने का सबसे महत्वपूर्ण पर्व, नाग पंचमी, आज पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि सोमवार रात 11:28 बजे से शुरू हो गई थी, लेकिन उदया तिथि की मान्यता के कारण यह पर्व मंगलवार को मनाया जा रहा है और पूजा का शुभ समय मध्यरात्रि 12:23 बजे तक रहेगा। इस बार की नाग पंचमी ज्योतिष की दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ और फलदायी है, क्योंकि इस दिन शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और सिद्धि योग का अद्भुत त्रिवेणी संगम बन रहा है।
पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार, नाग देवता की पूजा-अर्चना पूरे दिन की जा सकती है, लेकिन पूजा के लिए सबसे विशेष और फलदायी मुहूर्त सुबह 4:32 बजे से लेकर दोपहर 1:25 बजे तक रहेगा। इस अवधि में की गई पूजा से नाग देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आज शिव मंदिरों में भगवान शिव के साथ-साथ उनके गण नागों की भी विशेष पूजा की जा रही है और मंदिरों में विशेष श्रृंगार व भोग की व्यवस्था की गई है।सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा
कालसर्प दोष से मुक्ति का सर्वोत्तम दिन
यह दिन उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिनकी कुंडली में कालसर्प योग या राहु-केतु से संबंधित कोई दोष है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से नाग देवता का पूजन करने से इन सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। रायपुर के नरहरेश्वर महादेव मंदिर के पुजारियों के अनुसार, यदि पास में कोई नाग मंदिर न हो, तो शिवलिंग पर दूध अर्पित कर भी नाग देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा
क्यों मनाई जाती है नाग पंचमी? पढ़ें ये दो पौराणिक कथाएं
नाग पंचमी का पर्व क्यों मनाया जाता है और इस तिथि का नागों से क्या संबंध है, इसके पीछे अग्नि पुराण में वर्णित दो कथाएं प्रमुख हैं:
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माता कद्रू का श्राप: समुद्र मंथन के समय निकले उच्चैःश्रवा नामक सफेद घोड़े को लेकर नागों की माता कद्रू और उनकी सौत विनता में शर्त लग गई। कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से उस घोड़े के बालों से लिपटकर उसे काला दिखाने को कहा ताकि वह शर्त जीत सके। जब नागों ने ऐसा छल करने से मना कर दिया, तो क्रोधित होकर कद्रू ने उन्हें श्राप दे दिया कि राजा जनमेजय के सर्प-यज्ञ में वे सभी जलकर भस्म हो जाएंगे।
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आस्तीक मुनि ने की थी नागों की रक्षा: माता के श्राप से भयभीत होकर नाग ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि समय आने पर महर्षि आस्तीक उनके वंश की रक्षा करेंगे। आगे चलकर जब राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प-यज्ञ आरंभ किया और करोड़ों नाग उसमें भस्म होने लगे, तब आस्तीक मुनि ने ही यज्ञ को रोककर नागों के प्राणों की रक्षा की थी। जिस दिन उन्होंने यह रक्षा की, वह श्रावण मास की पंचमी तिथि थी। इसी कारण यह तिथि नागों को अत्यंत प्रिय है और इस दिन उनकी पूजा का विधान है।
करेले और कड़वी चीजों का भी लगता है भोग
छत्तीसगढ़ के प्राचीन भोरमदेव मंदिर के पंडितों के अनुसार, नाग देवता को दूध, खीर और मीठी वस्तुओं के अलावा करेले जैसी कड़वी चीजों का भोग लगाने की भी परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से विष और सर्प का भय समाप्त होता है।सर्वार्थ सिद्धि और सिद्धि के त्रियोग में होगी नागों की पूजा









