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गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां! पूरे देश में जहां गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का गोपालपुर गांव अपनी 200 साल पुरानी एक अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां न तो घरों में और न ही पंडालों में मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। इस रहस्यमय परंपरा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है जो इसे और भी खास बनाती है।

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अष्टभुज श्री गणेश मंदिर में ही उत्सव

गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!
राजनांदगांव से लगभग 23 किलोमीटर दूर स्थित गोपालपुर गांव में करीब 500 लोगों की आबादी है, जिनमें ज्यादातर हिंदू परिवार रहते हैं। गणेश चतुर्थी पर यहां गणपति बप्पा के जयकारे तो गूंजते हैं, लेकिन कहीं भी नई मिट्टी की प्रतिमा नजर नहीं आती। दरअसल, गांव में केवल एक ही अष्टभुज श्री गणेश मंदिर है और पूरा गांव इसी मंदिर में उत्सव मनाता है। यह परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है, जो लगभग 150 से 200 साल पुरानी है।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

रहस्यमय तरीके से गिरी मूर्ति, फिर कोई उठा ही नहीं पाया

गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!
ग्रामीणों की मान्यता है कि एक बार पास के शृंगारपुर गांव से राज परिवार बैलगाड़ी में गणेश और हनुमान जी की पत्थर की मूर्तियां ला रहा था। गोपालपुर के मुख्य मार्ग पर गणेश जी की मूर्ति अचानक गिर गई और लाख कोशिशों के बाद भी उसे हिलाया नहीं जा सका। अंततः उसी जगह पर मूर्ति स्थापित कर दी गई और बाद में मंदिर बनवाया गया। ग्रामीण बताते हैं कि यह मूर्ति स्वयंभू है, यानी खुद प्रकट हुई, और इसे हिलाने की हर कोशिश विफल रही।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

राज परिवार से जुड़ी चौंकाने वाली कहानी
एक और कहानी राज परिवार से जुड़ी है। खैरागढ़ राज परिवार ने एक बार महल में मिट्टी की गणेश प्रतिमा स्थापित की, तो अगले ही दिन परिवार के एक सदस्य की मृत्यु हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि भगवान गणपति ने सपने में आकर अलग से मूर्ति स्थापित करने से मना किया था, लेकिन नियम तोड़ने पर हानि हुई। इसके बाद गांववासियों ने भी कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार कोशिश करने वाले को नुकसान उठाना पड़ा। इन घटनाओं से डरकर गांव ने यह परंपरा अपनाई कि केवल अष्टभुज गणेश मंदिर में ही पूजा होगी।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

गांव में नहीं है किसी अन्य देवता का मंदिर
गोपालपुर गांव में आज किसी अन्य देवता का मंदिर नहीं है। ग्रामीणों का दृढ़ विश्वास है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है, इसलिए उन्हें दूसरे मंदिर की आवश्यकता महसूस नहीं होती। गणेशोत्सव में 11 दिनों तक पूजा-अर्चना होती है। पंडाल सजाए जाते हैं, भजन-कीर्तन होते हैं, लेकिन विसर्जन की बजाय फल-फूल और अन्य सामग्री को पास के तालाब में विसर्जित किया जाता है। मूर्ति को तालाब से लाए दो बाल्टी पानी से स्नान कराया जाता है और साल भर उसकी पूजा जारी रहती है।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

2006 में पेश आया अद्भुत वाकया
एक दिलचस्प घटना 2006 की है, जब मंदिर निर्माण के दौरान मूर्ति को नीम के पेड़ के नीचे से हटाने की कोशिश की गई। 20-25 युवकों के प्रयास विफल रहे। अगले दिन सेवक गोरे लाल पटेल को सपना आया, जिसके बाद मूर्ति आसानी से हिल गई और अब मंदिर में विराजमान है। गोरे लाल बताते हैं कि उनके पूर्वज बताते थे कि सिंगारपुर के राजा गणेश और हनुमान जी की मूर्तियां लाए थे, लेकिन गणेश जी यहीं रुक गए।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

यह अनोखी परंपरा गोपालपुर गांव को न केवल आस्था का प्रतीक बनाती है, बल्कि एक ऐतिहासिक रहस्य भी। ग्रामीण कहते हैं कि यह परंपरा कभी नहीं टूटेगी, क्योंकि यह भगवान की इच्छा है।गोपालपुर गांव की अनोखी गणेशोत्सव परंपरा, जहां नहीं स्थापित होती मिट्टी की मूर्तियां!

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