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हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

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छत्तीसगढ़: हरेली तिहार: जब सावन की रिमझिम फुहारें छत्तीसगढ़ की धरती को भिगोती हैं, तो हर तरफ हरियाली की चादर बिछ जाती है। इसी मनमोहक हरियाली और कृषि संस्कृति का जश्न मनाने वाला पर्व है ‘हरेली तिहार’। यह छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार माना जाता है, जो श्रावण मास की अमावस्या को बड़े ही धूमधाम और पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ खेती-किसानी तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें प्रकृति, मवेशी और इंसानी रिश्तों की गहरी भावनाएं भी समाहित हैं।

कृषि उपकरणों की पूजा: धरती और श्रम का सम्मान

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

हरेली, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘हरियाली’ है, किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस समय तक खेतों में धान की रोपाई और बोआई जैसे काम लगभग पूरे हो चुके होते हैं। हरेली के दिन किसान अपने कृषि यंत्रों जैसे हल, गैंती, कुदाल, फावड़ा आदि को धो-पोंछकर सजाते हैं और उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं। यह अनुष्ठान उन औजारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक माध्यम है, जो उनकी आजीविका का आधार हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे फसल अच्छी होती है और घर में समृद्धि आती हैlहरेली तिहार

गेड़ी का उल्लास: संतुलन और आनंद का खेल

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

हरेली का सबसे आकर्षक और अनूठा पहलू ‘गेड़ी’ है। बांस से बनी लंबी डंडियों पर चढ़कर चलना बच्चों और युवाओं के लिए साहस और संतुलन की परीक्षा होती है। पहले के समय में, जब बारिश के कारण गांवों की गलियों में कीचड़ भर जाता था, तब गेड़ी पर चढ़कर घूमना एक जरूरत भी थी और आनंद का जरिया भी। हालांकि, अब पक्की सड़कों के बनने से कीचड़ की समस्या कम हो गई है, लेकिन गेड़ी चढ़ने की परंपरा आज भी इस त्योहार की पहचान बनी हुई है गांव-गांव में गेड़ी दौड़ और विभिन्न पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है, जो सामाजिक जुड़ाव को मजबूत करते हैं।हरेली तिहार

परंपराओं का संगम: नीम की टहनी से लेकर स्वादिष्ट पकवान तक

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

हरेली त्योहार पर कई अनूठी परंपराएं निभाई जाती हैं। इस दिन लोग अपने घरों के दरवाजों पर नीम की टहनियां लगाते हैं। माना जाता है कि नीम के औषधीय गुण नकारात्मक ऊर्जा, बीमारियों और कीड़े-मकोड़ों को दूर रखते हैं। साथ ही, किसान अपने पशुधन, खासकर गाय और बैलों को नहलाकर और सजाकर उनकी पूजा करते हैं और उन्हें बीमारी से बचाने के लिए विशेष औषधि खिलाते हैं।हरेली तिहार

हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की किसानी संस्कृति का प्रतीक, गेड़ी के बिना क्यों है अधूरा?

इस त्योहार का जश्न स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के बिना अधूरा है। घरों में गुड़ का चीला, ठेठरी, खुरमी, गुलगुला भजिया और फरा जैसे पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिनकी खुशबू उत्सव के माहौल को और भी खास बना देती है।हरेली तिहार

सामाजिक समरसता का प्रतीक

हरेली तिहार की सबसे बड़ी खूबी इसकी सामाजिक समरसता है। यह किसी एक जाति या वर्ग का त्योहार न होकर पूरे गांव का उत्सव होता है, जिसमें सभी लोग मिल-जुलकर भाग लेते हैं। यह पर्व नई पीढ़ी को अपनी जड़ों, अपनी मिट्टी और अपनी परंपराओं से जुड़ने का संदेश देता है और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की सीख देता है।हरेली तिहार

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