मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार, घरों की हिलने लगी नींव
हर दिन 2 से 3 फीट धंस रही जमीन, स्थानीय लोग दहशत में; प्रशासन पर लापरवाही के आरोप

मसूरी, उत्तराखंड: मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार, घरों की हिलने लगी नींव, देवभूमि उत्तराखंड में भारी बारिश के बाद हालात बिगड़ते जा रहे हैं। पहाड़ों की रानी मसूरी के झड़ीपानी क्षेत्र में लगातार हो रहे भूस्खलन ने स्थानीय लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। 15 सितंबर की रात से शुरू हुआ यह भूस्खलन अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है, जिसके चलते जमीन हर दिन 2 से 3 फीट नीचे धंस रही है। सड़कों में गहरी दरारें पड़ गई हैं और कई घरों की नींव कमजोर होने लगी है, जिससे स्थानीय निवासी गहरी दहशत में हैं।
बेकाबू होता भूस्खलन: सड़कों से घरों तक तबाही
झड़ीपानी क्षेत्र में भूस्खलन का प्रकोप इस कदर बढ़ गया है कि अब यह सिर्फ सड़कों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि घरों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, 15 सितंबर की रात से शुरू हुई यह प्राकृतिक आपदा थमने का नाम नहीं ले रही है। सड़कों पर बनी विशाल दरारें देखकर ऐसा लगता है जैसे जमीन किसी बड़े हादसे को न्योता दे रही है। कई घरों की नींव हिलने लगी है, जिससे उनके गिरने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
स्थानीय निवासी आईएएनएस से बात करते हुए बताते हैं कि भूस्खलन के कारण एक नेपाली मजदूर की मलबे में दबकर मौत हो चुकी है। यह घटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि स्थिति कितनी गंभीर है, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। लोगों का आरोप है कि घटना के इतने दिनों बाद भी न तो कोई भू-वैज्ञानिक टीम मौके पर पहुंची है और न ही आपदा राहत दल ने मोर्चा संभाला है।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
“क्या सरकार बड़े हादसे का इंतजार कर रही है?” – स्थानीय लोगों का आक्रोश
प्रशासन की इस कथित लापरवाही से स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है। सुशीला देवी नामक एक स्थानीय महिला ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि हर बार बारिश के मौसम में उन्हें अपना घर छोड़कर सुरक्षित जगह जाना पड़ता है। अब तो स्थिति यह है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने में भी डर महसूस करती हैं। सुशीला देवी का कहना है कि प्रशासन की तरफ से उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
उन्होंने आरोप लगाया, “मुख्यमंत्री जी राहत देने की बात तो करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई अधिकारी हमारी सहायता के लिए आगे नहीं आ रहा है। हमारे बच्चे भूखे हैं और हम लोग हर पल मौत के साये में जीने को मजबूर हैं।”मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
स्थानीय लोगों ने कई बार अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई है, लेकिन उनकी शिकायतें अनसुनी की जा रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करने को मजबूर होंगे। लोग अब खुले तौर पर सवाल उठा रहे हैं कि “क्या सरकार किसी और बड़े हादसे का इंतजार कर रही है, ताकि तब जाकर उनकी नींद खुले?”मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
पहाड़ों पर बढ़ता खतरा और अनसुनी चेतावनी
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश के बाद भूस्खलन और जमीन धंसने की घटनाएं आम हो गई हैं, लेकिन झड़ीपानी में जिस तेजी से जमीन धंस रही है, वह चिंताजनक है। भू-वैज्ञानिक लंबे समय से इस बात की चेतावनी दे रहे हैं कि अनियोजित विकास और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों के कारण पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। ऐसे में भारी बारिश इन कमजोर पहाड़ों के लिए और भी घातक साबित होती है।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
झड़ीपानी की घटना एक बार फिर इस बात को उजागर करती है कि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए एक मजबूत और सक्रिय आपदा प्रबंधन प्रणाली की कितनी आवश्यकता है। साथ ही, यह उन स्थानीय निवासियों की आवाज को भी बुलंद करती है जो हर पल खतरे के बीच जीने को मजबूर हैं और जिनकी सुरक्षा प्रशासन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार
प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल भू-वैज्ञानिकों की टीम भेजकर स्थिति का आकलन करवाए, प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए और भूस्खलन को रोकने के लिए दीर्घकालिक उपाय करे, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों से बचा जा सके। स्थानीय लोगों की मांग और सुरक्षा सुनिश्चित करना अब समय की मांग है, इससे पहले कि कोई और बड़ा हादसा हो जाए।मसूरी में कुदरत का कहर: झड़ीपानी में भूस्खलन से हाहाकार









