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क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए? जानिए विशेषज्ञों की राय

क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए? जानिए विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली। टीम इंडिया के हालिया प्रदर्शन और बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में निराशाजनक हार के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कोचिंग स्ट्रक्चर पर बहस तेज हो गई है। एक नई चर्चा ने जोर पकड़ा है कि क्या भारतीय क्रिकेट टीम के लिए दो अलग-अलग कोच नियुक्त किए जाने चाहिए? इस मुद्दे पर इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर मोंटी पनेसर और भारत के पूर्व चयनकर्ता सुनील जोशी के विचार आपस में बिल्कुल भिन्न हैं।क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए

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मोंटी पनेसर: अलग-अलग कोच का विचार अच्छा हो सकता है

क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए? जानिए विशेषज्ञों की राय

इंग्लैंड के पूर्व क्रिकेटर मोंटी पनेसर ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच रखना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। उन्होंने कहा:

  • वर्कलोड प्रबंधन की जरूरत:
    “मुझे लगता है कि गंभीर के लिए वर्कलोड बहुत ज्यादा है। कभी-कभी कोच के तौर पर नेतृत्व करना मुश्किल हो सकता है, खासकर जब कुछ खिलाड़ी आपके पुराने साथी हों।”
  • रिकॉर्ड का प्रभाव:
    “गंभीर का खुद का बल्लेबाजी रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में बहुत अच्छा नहीं रहा है, जो कोचिंग के दौरान एक चुनौती बन सकता है।”

सुनील जोशी: दो कोच के विचार को किया खारिज

भारत के पूर्व चयनकर्ता सुनील जोशी इस विचार से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि एक ही कोच का होना टीम की स्थिरता के लिए ज्यादा जरूरी है।क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए

  • परिणाम स्वीकार करना जरूरी:
    “बीजीटी (बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी) में हार को हमें स्वीकार करना चाहिए। हमें अपनी रणनीति पर टिके रहना चाहिए और पश्चिमी तरीकों की ओर नहीं जाना चाहिए।”
  • फॉर्मेट के अनुसार एक कोच सही:
    “हमारे अधिकतर खिलाड़ी तीनों फॉर्मेट में खेलते हैं। इसलिए अलग-अलग कोच रखने से कई तरह के विचार आने लगते हैं, जो निर्णय लेने में भ्रम पैदा कर सकते हैं।”

अलग कोचिंग के खिलाफ सुनील जोशी की तर्क

सुनील जोशी ने बताया कि अगर टीम इंडिया में अलग-अलग कोच होते हैं, तो कई नई समस्याएं पैदा हो सकती हैं:

  1. विभिन्न कोच, अलग रणनीतियां:
    • व्हाइट-बॉल कोच और टेस्ट कोच के विचार अलग हो सकते हैं।
    • ट्रेनिंग और मैच-प्रबंधन में भी अंतर होगा।
  2. निर्णय लेने में असमंजस:
    • दो कोच होने पर 1% निर्णय में भी असहमति हो सकती है, जिससे टीम के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा।
  3. इंग्लैंड का उदाहरण:
    • इंग्लैंड ने अलग-अलग कोचिंग के खराब परिणाम के बाद ब्रेंडन मैकुलम को तीनों फॉर्मेट का कोच बना दिया है।

क्या हो सकता है भारतीय क्रिकेट के लिए सही विकल्प?

  • स्थिरता बनाए रखना:
    • जोशी का मानना है कि टीम इंडिया को अपनी मौजूदा रणनीति पर ही टिके रहना चाहिए।
  • वर्कलोड मैनेजमेंट:
    • कोच और खिलाड़ियों के वर्कलोड को सही तरीके से प्रबंधित करना जरूरी है।
  • संयुक्त कोचिंग टीम:
    • अलग-अलग कोच के बजाय एक सिंगल हेड कोच के तहत अलग-अलग विशेषज्ञ (बल्लेबाजी, गेंदबाजी, फील्डिंग) रखे जा सकते हैं।

टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच रखने का विचार फिलहाल विवादास्पद है। जहां मोंटी पनेसर इसे वर्कलोड मैनेजमेंट के लिए सही मानते हैं, वहीं सुनील जोशी इसे भारतीय क्रिकेट के लिए नुकसानदेह मानते हैं। बीसीसीआई के लिए यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इसका असर आने वाले टूर्नामेंट्स पर पड़ेगा।क्या टीम इंडिया के लिए दो अलग-अलग कोच होने चाहिए

 

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