मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य, CIC का आदेश निरस्त
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें सार्वजनिक पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की शैक्षणिक योग्यता और अनुभव प्रमाण-पत्रों से संबंधित जानकारी सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत देने से इनकार कर दिया गया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी जानकारी को “निजी सूचना” नहीं माना जा सकता और पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इसे जनता को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इस फैसले को अयोग्य व्यक्तियों को बचाने के प्रयासों पर एक बड़ी चोट के रूप में देखा जा रहा है।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
पृष्ठभूमि: CIC का इनकार और याचिकाकर्ता की चुनौती
मामले की शुरुआत तब हुई जब याचिकाकर्ता डॉ. जयश्री दुबे ने RTI के माध्यम से सार्वजनिक पदों पर नियुक्त कुछ उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता और अनुभव प्रमाण-पत्रों की जानकारी मांगी थी। केंद्रीय सूचना आयोग ने यह कहते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था कि यह RTI अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत “निजी सूचना” की श्रेणी में आती है। CIC ने जानकारी रोकने के लिए RTI अधिनियम की धारा 11 का भी हवाला दिया था, जो तीसरे पक्ष की सूचना से संबंधित है। डॉ. दुबे ने CIC के इस निर्णय को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
न्यायालय का RTI प्रावधानों का गहन विश्लेषण
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने अपने निर्णय में RTI अधिनियम के संबंधित प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 8(1)(जे) का गहन विश्लेषण किया। इस धारा के अनुसार, व्यक्तिगत जानकारी को तब रोका जा सकता है जब वह किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित न हो और उसके प्रकटीकरण से गोपनीयता का अनुचित उल्लंघन होता हो। हालांकि, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि डॉ. दुबे द्वारा मांगी गई जानकारी सार्वजनिक पदों पर नियुक्त उम्मीदवारों से संबंधित थी, और इसलिए यह व्यापक जनहित का मामला था। न्यायालय ने माना कि ऐसी जानकारी निजी नहीं है और RTI अधिनियम के तहत इसे सुलभ बनाया जाना चाहिए।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
CIC के पूर्व निर्णयों का संदर्भ और न्यायालय की आलोचना
न्यायालय ने अपने फैसले में CIC के ही कई पुराने निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें यह स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया था कि सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों से संबंधित शैक्षणिक योग्यता, अनुभव प्रमाण पत्र और अन्य विवरण “निजी जानकारी” की श्रेणी में नहीं आते हैं। इन पूर्व निर्णयों में यह पुष्टि की गई थी कि ऐसी जानकारी जनता को उपलब्ध कराई जानी चाहिए क्योंकि यह सीधे तौर पर सार्वजनिक नियुक्तियों की सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता से जुड़ी हुई है। उच्च न्यायालय ने इस बात पर हैरानी जताई और CIC की आलोचना की कि उसने अपने ही पूर्व स्थापित नज़ीरों पर विचार क्यों नहीं किया।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
सार्वजनिक हित सर्वोपरि: अवैध नियुक्ति का मामला
यह मामला एक सार्वजनिक पद पर हुई एक कथित अवैध नियुक्ति से भी जुड़ा था। आरोप था कि एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त व्यक्ति के पास आवश्यक योग्यताएं, जैसे कि पीएचडी की डिग्री और निर्धारित वर्षों का अनुभव नहीं था। याचिकाकर्ता डॉ. दुबे ने तर्क दिया कि जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि सार्वजनिक पदों पर नियुक्त किए जा रहे उम्मीदवारों के पास आवश्यक योग्यता और अनुभव है या नहीं, खासकर तब जब नियुक्तियों की वैधता पर सवाल उठ रहे हों। न्यायालय ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में व्यापक जनहित किसी भी व्यक्तिगत गोपनीयता संबंधी चिंताओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
सूचना प्रकटीकरण पर न्यायालय का अंतिम निष्कर्ष
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने निष्कर्ष में कहा कि सार्वजनिक नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल उम्मीदवारों की शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता, अनुभव प्रमाण पत्र और संबंधित फाइल नोटिंग के बारे में जानकारी का खुलासा पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी जानकारी को, विशेष रूप से जब यह अवैध नियुक्तियों से संबंधित हो, किसी भी सूरत में रोका नहीं जा सकता। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मांगी गई जानकारी याचिकाकर्ता डॉ. दुबे को उपलब्ध कराई जानी चाहिए, क्योंकि यह RTI अधिनियम की धारा 11(1) में उल्लिखित अपवाद के अंतर्गत आती है, जो व्यापक जनहित में तीसरे पक्ष के हितों को नुकसान से अधिक महत्व दिए जाने पर सूचना के प्रकटीकरण की अनुमति देती है।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
न्यायालय का आदेश और जुर्माना
उच्च न्यायालय ने जन सूचना अधिकारी (PIO) को आदेश की तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर डॉ. दुबे को मांगी गई समस्त जानकारी निःशुल्क उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इसके साथ ही, न्यायालय ने प्रतिवादियों पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और मुकदमे का खर्च भी उन्हें वहन करने का आदेश दिया।सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों की जानकारी RTI के तहत देना अनिवार्य
मामले का विवरण और कानूनी प्रावधान:
-
केस संख्या: रिट याचिका संख्या 39771/2024
-
संदर्भित आरटीआई प्रावधान: धारा 8(1)(जे) और धारा 11
यह निर्णय सूचना के अधिकार को मजबूत करने और सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।